08 Unique Rules of Japan Schools। जापान के स्कूलो के 12 अनोखे नियम। अध्ययन के अलावा जापान के विद्यालयों की दिनचर्या

नमस्कार दोस्तों, जैसा कि आप जानते है कि आज जापान दुनिया की सबसे शक्तिशाली देशों में शुमार है, जिसकी एक खास वजह है वहां की शिक्षा प्रणाली भी है। दुनिया का सबसे ज्यादा साक्षरता दर वाला देश जापान है, यहाँ पर 15 साल तक के बच्चों की साक्षरता दर 99% से भी ज्यादा है, जो दुनिया में किसी भी अन्य देश से सबसे ज्यादा है। आज हम इस लेख के माध्यम से जापान के स्कूलो कुछ अजीबो गरीब नियमों के बारे में जो भले ही आपको अटपटे लगे, लेकिन वहां प्रत्येक छात्र को इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है।

01- स्कूली दिनचर्या में समय का नियम

  • जापान के स्कूलो में बच्चो को सुबह 8:30 से पहले स्कूल पहुंचना आवश्यक है।
  • जापान में बच्चों पर स्कूल के बाद विषय चुनने का कोई दबाव नहीं होता। अगर बच्चे निर्णय नहीं ले पाते तो अध्यापक उन बच्चों की सहायता करते हैं।
  • जापान के स्कूलो में बच्चो को लव रिलेशन में पड़ना सख्त मना है, पढाई के छात्रो को वहां सिर्फ पढ़ाई के बारे में ध्यान केन्द्रित करना है।
  • जापान में छोटे बच्चों को घर पर काम करने के लिए होमवर्क नहीं मिलता।
  • जापान में हाईस्कूल करने के बाद बच्चों को घर पर काम करने के लिए बहुत काम मिलता है, और
  • जापान के स्कूलों में बच्चों को गलती या शरारत करने पर कक्ष से बाहर नहीं निकाला जाता, कक्षा से बहार निकलना वहाँ की शिक्षा प्रणाली के खिलाफ है।
  • जापान में अध्यापक बहुत कम छुट्टी पर जाते है। परन्तु किसी कारणवश अध्यापक अगर स्कूल नहीं आ सकते है तो उसकी जगह कक्षा में कोई अन्य अध्यापक आये है तो सभी बच्चे उस टीचर से शिष्टाचार से पेश आएंगे और उस विषय की बारे खुद अपने आप बैठकर पढते रहेंगे।

02- स्कूली दिनचर्या में साफ सफाई का नियम

जापान के स्कूलों में बच्चे खुद अपने कक्ष की सफाई करते है, और उनके इस कार्य में उनके टीचर बच्चों को सफाई करने में मदद करते हैं। वहाँ बच्चों को शुरू से ही खुद ही सफाई करना सिखाया जाता है ताकि बच्चे सफाई रखना भी सीखें। स्कूल खत्म होने के बाद ये बच्चों का कार्य होता है कि वो क्लास रूम की सफाई करें।

03- स्कूली दिनचर्या में शिष्टाचार्य का नियम

जापान में प्राचीन समय से ही झुककर प्रणाम करने की परंपरा है, यहां अध्यापक को काफी आदर के साथ प्रणाम किया जाता है।  इसलिए स्कूल में बच्चों को शुरू से ही बड़ों का आदर करना सिखाया जाता है, कक्षा में आने से पहले और जाने से पहले अपना सर अपने गुरु के आगे झुका के विद्यार्थियों को आदर देना होता है।

04- स्कूली दिनचर्या में भोजन का नियम

जापान में जूनियर हाईस्कूल तक के बच्चो को अपनी क्लास में बैठ कर ही लंच करना होता है, और उनके शिक्षक भी बच्चों के साथ बैठ कर ही खाना खाते हैं। वहाँ का हर बच्चा अपने साथ बैठने की लिए मेट और खाने के लिए प्लेट भी लाता है, और खाने के बाद अपने बर्तनों को भी स्वयं ही धोना पड़ता है। जापानी भाषा में लंच को क्यूशोकू बोलते हैं।

05- स्कूली दिनचर्या में दोपहर का संतुलित भोजन के नियम

जापान के लगभग सभी विद्यालयों में दोपहर को गर्मा- गर्म संतुलित भोजन परोसा जाता है। आहार परोसने और उसके बाद सामान को इकठ्ठा करने का सारा काम छात्र ही करते हैं। प्रतिदिन सफ़ाई का समय भी निर्धारित किया गया है। कक्ष और गलियारा से लेकर छात्रों के शौचालय तक की सफ़ाई छात्र ही प्रतिदिन अपने समय से करते हैं।

06- स्कूली दिनचर्या में यूनिफार्म का नियम

नियम 01- वहां जूनियर हाईस्कूल तक के छात्रों को स्कूल यूनिफार्म पहननी आवश्यक होती है, जिसे जापानी भाषा में सिफुकू बोलते हैं। जापान के स्कूलों में एक नियम यह भी है कि वहां ठण्ड में कोई भी स्टूडेंट अपनी स्कूल यूनिफार्म के साथ जैकेट या फिर रंग बिरंगी स्वेटर नहीं पहन सकता। काली, सिर्फ नीली, और भूरी रंग की स्वेटर पहन सकते है।

07- खेल-कूद, शारीरिक शिक्षा का ज्ञान

जापान के स्कूलो में प्रत्येक बच्चे को खेल-कूद और शारीरिक शिक्षा अनिवार्य विषयों में से एक है। अलग – अलग प्रकार के खेलों को खेलना, शारीरिक शिक्षा उम्र के अनुरूप शारीरिक ताक़त और शारीरिक क्षमता का विकास होता है। साथ ही बच्चे खेल के नियम, अपने दल के साथ सहयोग और शारीरिक व्यायाम के आनंद के बारे में सीखते हैं। जापान के स्कूलो में गर्मियों के मौसम में तैराकी की कक्षाएँ भी होती हैं।

08- गर्मियों की छुट्टियों में अतिरिक्त पाठ्यक्रम

01- गर्मियों की छुट्टियों में स्कूल वैसे तो स्कूल बंद होता है लेकिन फिर भी शिक्षक प्रतिदिन स्कूल जाते हैं, और स्कूल में विज्ञान, खेल, अभ्यास, जुडो, आर्ट, आदि की गतिविधियाँ कराई जाती हैं, इन गतिविधियाँ में बच्चे अपनी मर्जी से और रूचि के अनुसार भाग लेते हैं।

02- जापान के लगभग सभी स्कूलों में छात्रों को तैरना की ट्रेनिग दी जाती है, अगर कोई बच्चा इस ट्रेनिग के दौरान अच्छे से नहीं सीखता है तो उसे पूरी गर्मी की छुट्टियों में तैरना सीखना पड़ता है।

03- जापान में बच्चे अक्सर विद्यालयो से बाहर जाकर, ग्रामीण, क्षेत्रीय, शहरी, सामाजिक गतिविधियों के बारे में जानकारी करते हैं। अलग – अलग कंम्पनीयो मे प्रोडक्ट को बनाने की प्रक्रिया देखना? ट्रेफिक पुलिस कर्मियों की दिनचर्या देखना? कंम्पनीयो में कार्य करने बाले कर्मचारियों की दिनचर्या देखना, किसानों के बारे में जानकारी प्राप्त करना, जैसे- अपने प्रश्नों के उत्तर हासिल करने के लिए वे मुख्यतः कारखाने या किसानों के पास जाकर उनके कार्य के बारे में जानकारी प्राप्त करते है, छात्र समाज के विभिन्न वर्गो के लोगों से मिलकर अपने ज्ञान को बढाते है।

04- जापान एक मात्र ऐसा देश है जो मुख्य रूप प्राकृतिक आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित है। जैसे- आग, हिमस्खलन, भूकम्प, सुनामी, बादल फटने, बाढ़, चक्रवाती तूफ़ान, भूस्खलन, जैसी प्राकृतिक आपदायें बार-बार मनुष्य को चेतावनी देती है। इन आपदाओ से बचने के लिए विद्यालयों में भी नियमित रूप से आपदा अभ्यास कराये जाते हैं। ‘आग’ लगने पर सबसे पहले क्या करना है? ‘भूकम्प’ के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

05- जापान के लगभग सभी विद्यालयों में पाठ्यक्रम गतिविधियों के तौर पर बहुत से बच्चों को खेती, बागबानी, का अनुभव कराया जाता है। पानी से लबालब खेतों में बच्चे अपने हाथों से धान की बुवाई करते हैं। फूलों के खिलते हुए देखते हैं, फलो की खेती, धान की खेती, इत्यादि पर ग़ौर करते हुए फसल की बढ़त पर नज़र रखते हैं, और तूफ़ानों में फसल की सलामती के लिए क्या करना है इन बातों पर अध्ययन करते है।
साथियों के संग प्रकृति के वरदान का आनंद लेते हैं। किताबी ज्ञान से अलग, अनुभव से प्राप्त ज्ञान बच्चों के लिए खज़ाना होता है।

06- जापान के विद्यालयो में ज्ञानवर्धक और दैनिक जीवन से जुडे उपयोगी कौशल सिखाने वाली रोचक कक्षाऐ होती है। जैसे- सब्ज़ियों को अलग – अलग आकारों में काटना, खाने के लिए पौष्टिक व संतुलित आहार सोचना और फिर उसे पकाना। इनके अलावा टूटे हुए बटन टाँकना, सिलाई मशीन से कपडे सिलना, आरी और कीलों की सहायता से कोई उपयोगी सामान बनाना, इत्यादि। ऐसे कार्य जो निस्संदेह भविष्य में सभी के काम आएगा।

07- जापान के स्कूलो में कानून के अनुसार नियमित रूप से स्वास्थ्य जाँच होती है, बच्चों की लम्बाई नापना, वजन करना, आँखों की रोशनी व मूत्र जाँच के अलावा खून की नियमित जांच होती है, कोई भी रोग या शारीरिक समस्या की पहचान होने पर तुंरत उपचार उपलब्ध किया जा सकता है। दाँतो के डॉक्टर द्वारा बच्चों के मुंह में कीड़े की जाँच और ठीक से मंजन किया जा रहा है या नहीं, इसकी परीक्षण भी होते है। इस अनोखी गतिविधि से जो बच्चों के विकास एवं स्वास्थ्य को बनाये रखने में सहायक है।

Dharm Kumar

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